Saturday, February 20, 2010

निर्मल पांडे के अकस्मात चले जाने से स्तब्ध है पहाड़ के लोग


ध्रुव रौतेला.
शेखर कपूर की प्रख्यात फिल्म बेंडिट क्वीन में दस्यु सुंदरी फूलन देवी के प्रेमी विक्रम मल्लाह का जोरदार किरदार निभाने वाले नैनीताल निवासी निर्मल पांडे की अकस्मात मृत्यु से पूरे पहाड़ के लोगो को गहरा झटका लगा है . निर्मल दा की मृत्यु की खबर जब मैंने "ऑरकुट" में डाली तो दिल्ली बंगलोर और यहाँ तक की लन्दन से भी मुझे लोगो ने संपर्क कर पूछा की अचानक ये कैसे हो गया इन लोगो में अधिकांश मेरी ही पीड़ी के नोजवान साथी है जिनके लिए 'निर्मल दा' वाकई में हीरो थे . ८० के दशक में भीमताल के विकासखंड कार्यालय में जब वह सरकारी नौकरी कर रहे थे तो उन्होंने मल्लीताल रामलीला में 'सुमंत' का जीवंत किरदार निभाया था जिसका जिक्र आज भी भीमताल के लोग करते है भले ही उन्होंने एन.एस.डी में अपनी कला को निखारा हो लेकिन नैसर्गिक रूप से वह रामलीला के मंच से निकले राग भैरवी और खम्माज मार्का कलाकार थे . कई लोगो ने निर्मल पांडे की फिल्मो 'इस रात की सुबह नहीं ', 'शिकारी', 'प्यार किया तो डरना क्या' , ' वन टू का फोर', 'हम तुमपे मरते है' में उनके नेगेटिव रोल का जिक्र किया है लेकिन उनके जबरदस्त तरीके से सराहे गए एकमात्र म्यूजिक विडियो अल्बम " गब्बर मिक्स " के बारे में लिखना पत्रकार साथी भूल गए इस अल्बम में उन्होंने संगीत में गहरी रूचि के चलते ही अभिनय के साथ गीत भी गए थे शायद नाटकों के दौरान हारमोनियम और तबले की साज के रियाज का ही फल यह एल्बम था. निर्मल पांडे ने भले ही ऑफबीट और कॉमेर्सिअल दोनों ही फिल्मे की हो लेकिन रंगमंच को कभी नहीं छोड़ा नाटक और थियेटर में तो मानों उनकी आत्मा बस्ती हो कुमाऊ के एक प्रसिद्द नृत्य नाटिका 'भस्मासुर' के उनके दहलादेने वाले अभिनय को आज भी लोग यहाँ याद करते है. जुहूर आलम के नैनीताल में बनाये गए "युगमंच" से निकले निर्मल पांडे ने अपनी अभिनय छमता को लोहा विदेशी धरती पर भी मनाया फ्रांस में उन्हें फिल्म 'दायरा' के लिए बेस्ट नायिका का अवार्ड मिला जो अपने आप में अनूठा था . पहाड़ की मिटटी की खुसबू को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा जल, जंगल, जमीन जैसे संवेदनशील मुद्दों को लेकर वह चिंतित जरुर रहते थे और छेत्रिय हितो के चलते ही उत्तराखंड क्रांति दल से प्रत्यासी रहे मेरे कॉलेज के मित्र विधायक पुष्पेश त्रिपाठी के प्रचार में द्वाराहाट में उन्होंने खूब प्रचार भी किया. वर्ष २००५ में उनके और हेमंत पांडे के साथ में देहरादून में उतरांचल फिल्म समारोह में शामिल हुआ था उन्होंने तब भी कहा थी उतराखंड की प्रतिभा को हमें मंच देने के लिए आगे आन होगा अचानक काल का ग्रास बने इस भावुक अभिनेता का एक सपना जो अधूरा रह गया वह था कुमाऊ में रंगमंच के एक केंद्र को स्थापित करने की जो क्या अब पूरा हो पाएगा......

Wednesday, February 17, 2010

कौन बचाएगा भीमताल में फ्रेडी सर की तितलियों की विरासत ?



ध्रुव रौतेला
सर पर हेट मुह पर सिगार बड़ी हुई दाड़ी के साथ बिस्तर पर पड़े हुए इस शख्स को यदि आप पहली बार देखते तो लगता मानो यह कोई हिंदी फिल्म का विलन हो एकदम कठोर सा ... लेकिन कुछ देर रूककर बातचीत में आपको लग जाता की अन्दर से यह आदमी मुलायम और पर्यावरण को लेकर बेहद चिंतित है . में बात कर रहा हूँ नैनीताल के पास भीमताल के जूनस्टेट में रहने वाले फ्रेडी सर की जिन्होंने बीते रविवार इस दुनिया को अलविदा कह दिया ... लोग उन्हें तितलियों के वजह से खूब जानते है आखिर हर पर्यटक भीमताल यदि आये तो उनके घर पर बने इस संघ्राहालय को देखने जरूर जाता है ... भीमताल का होने के नाते हम बचपन से फ्रेडी सर से जुड़े थे मेरी एस सहपाठी मिनाक्षी तो उनके लिए बेटी से भी बढकर थी इसलिए मैंने फ्रेडी सर को काफी करीब से जाना और समझा है .. पिछले कुछ वर्षो से कैसे वह ब्रेन ट्यूमर से जूझ रहे थे वो सब बाते उन्होंने मुझे बताई भी थी लेकिन अफ़सोस की हम इस प्रकति प्रेमी को अकस्मात मौत से बचा न सके .....मैंने अपने दिल्ली के मीडिया जगत के कई लोगो को फ्रेडी सर से मिलवाया था शादी के बाद पत्नी को लेकर में उनका आशीर्वाद दिलवाने भी ले गया क्योकि वह चल पाने में अशर्मथ थे.... उनको कम पीने की गुजारिश भी में किया करता था लेकिन अंतिम दिनों में यह योद्धा भीतर से टूट गया था यह मैने महसूस भी किया. उनके तितलियों और कीट पतंगों के संसार पर टी.वी और प्रिंट के लिए मैने काफी स्टोरिया भी की.... मुझे देखते ही वो बोल पड़ते थे " हियर कम्स ध्रुव , माय ग्रांड सन .." दरअसल उनके पोते का नाम भी ध्रुव रखा गया है इसलिए इस नाम को वह दोहराते जरुर थे ... अपने मित्र डॉ. अजय रावत से जुड़े कॉलेज के दिनों की बाते हो या भीमताल शहर के स्थानीय मुद्दे वह बेबाकी से अपनी राय जरुर रख देते थे . फ्रेडरिक स्माताचेक जूनियर जो अब हम लोगो के बीच नहीं है मूलतः जर्मनी के रहने वाले थे उनकी माता शाहिदा टीपू सुल्तान के खानदान से ताल्लुक रखती थी. उनके पिता फ्रेडी सीनियर भीमताल के राणा एस्टेट में बतौर मैनेजेर आये थे यह प्रोपर्टी महाराजा बलरामपुर और नेपाल मूल के राजपरिवार के राणा खानदान की थी जिन्होंने एक लम्बा भूभाग फ्रेडी सीनियर को पॉवर ऑफ़ अटर्नी के रूप में दे दिया था अब भीमताल तेजी से पर्यटक स्थल का रूप ले रहा है इसलिए जमीन को लेकर विवाद बना हुआ है . फ्रेडरिक स्माताचेक जूनियर का हिंदी और कुमाउनी भाषा में अच्छी पकड़ थी वह कई वर्षो तक जूनस्टेट के निर्वाचित ग्रामप्रधान भी रहे जिसे आदर्श ग्रामसभा का राष्ट्रपति सम्मान भी मिला . मध्य हिमालयी इलाको की भौगौलिक उथल पुथल के वह घनिष्ट जानकर थे और साहसिक यात्राओ में सुरुवाती दिनों में काफी जाया करते थे और फोटोग्राफी उनके खास शौक था देश की कई नामचीन हस्तिया जैसे फिल्म सितारे सुनील शेट्टी , डीनो मोरेया और कई आई ए एस अधिकारी , पत्रकार और प्रोफ़ेसर उनके करीबी मित्र थे. अपने पिता के तितली प्रेम को उन्होंने आगे बढाया और सहेज कर भी रखा अब उनकी मृत्यु के बाद सवाल यह है की इतनी बड़ी विरासत और अध्यन की प्रयोगशाला को कौन बचाकर रखेगा. उनकी पत्नी दिल्ली और बेटा मुंबई में रहते है उनके काफी निकट रहे स्थानीय अम्बा दत्त कांडपाल को क्या उनका परिवार ये हक़ देगा ? कई प्रश्न है जो अनुतरित है. चाहे तो उत्तराखंड की सरकार इस अनूठे संघ्राहालय को राजकीय धरोहर भी बना सकती है ताकि विज्ञानं के छात्र यहाँ से कुछ सीखे और फ्रेडी सर के काम को दुनिया भर के लोग देखने भीमताल पहुच सके .

Saturday, February 13, 2010

बाघ-बाघ करते हो फिर बाघों को क्यों मारते हो ?


रिपोर्ट- ध्रुव रौतेला

साल दो हजार दस को भारत सरकार "टाइगर इयर" के रूप में मना रही है लेकिन देश के प्रमुख राष्ट्रिय पार्को में अब भी बाघों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयासों की आवस्यकता है साथ ही बाघों की लगातार घटती संख्या और बढती तस्करी के बीच खबर है की देहरादून का भारतीय वन जीव संस्थान देश में पहली बार उच्च कोटि के केमरों की मदद से सेंसेस यानि बाघों की गड़ना करेगा अब तक वन कर्मचारियो द्वारा पुरानी विधि से ही गड़ना होती थी रामनगर कॉर्बेट टाइगर पार्क में २००७ की गड़ना के अनुसार कुल बाघों की संख्या १६४ बताई गयी थी पिछले वर्ष यानि २००९ में कुल ९ बाघों की यहाँ मौते हुई है साल दो हजार दस को भारत सरकार "टाइगर इयर" के रूप में मना रही है लेकिन देश के प्रमुख राष्ट्रिय पार्को में अब भी बाघों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयासों की आवस्यकता है साथ ही बाघों की लगातार घटती संख्या और बढती तस्करी के बीच खबर है की देहरादून का भारतीय वन जीव संस्थान देश में पहली बार उच्च कोटि के केमरों की मदद से सेंसेस यानि बाघों की गड़ना करेगा भारत में बाघों की संख्या वर्ष १९७१ में १२०० १९८९ में ४२०० १९९६ में २५०० और २००६ में कुल १४११ रह गयी थी जानकार पुरानी विधि को भी कारगर मानते है- यदि पिछले ३५ वर्सो पर नजर डाले तो रामनगर के कॉर्बेट टाइगर रिसर्व और आसपास के जंगलो में ८७ बाघों की मौते हो चुकी है जिनमे सबसे ज्यादा मौत पिछले वर्ष २००९ में ९ बाघों की हुयी है यदि कैमरों की आँखों से देश भर के बाघों की गिनती सही निकली तो सरकार के पास वास्तविक आंकड़े तो आएंगे ही साथ में नयी योजना बनाने को भी मदद मिलेगी देश हर के प्रमुख रास्ट्रीय पार्को में डब्लू आई आई कुल एक हजार कैमरे लगाने की योजना बना रहा है अपनी इस महायोजना के तेहत संस्थान कुल १७ राज्यों के वन अधिकारियो को प्रक्षिशन दे चुका है -नैनीताल जनपद के रामनगर स्थित कॉर्बेट टाइगर रिसर्व में बीते पेन्तीश सालो में कुल ८८ बाघों की मौत हो चुकी है जिनमे सवार्धिक नौ मौते बीते साल यानि २००९ में हुई थी अब और एक बाघ की मौत से पार्क प्रसाशन में हडकंप मच गया है साथ ही पर्यवरण विद और वन्य प्रेमी भी चिंतित है - यदि पिछले पैतीस सालो के इतिहास की बात करे तो कॉर्बेट व उसके आस-पास के जंगलो में अबतक ८७ बाघ मौत की नींद सो चुके है. जिसमे से सबसे अधिक पिछले साल ९ थे. इनमे से ५ को नरभक्षी होने के कारन गोली मारी गई थी. आकड़ो पर गौर करे तो कॉर्बेट टाइगर रिसर्व में १९७५ में एक बाघ की मौत १९७७ में चोट के कारन और १९७८ में आपसी लड़ाई में एक-एक बाघ की मौत हुई थी. १९७९ में यहाँ एक हठी ने बाघ को मार डाला था वही आज्ञात कारणों से दो और बाघ मरे गए थे. वर्ष १९८० में अजगर ने एक बाघ की जान ली और एक छोटे बाघ की माँ के बिछड़ने से मौत हो गई. १९८२ में दो १९८४ में ६ १९८५ में ४ १९८६ में भी ४ और १९८७ में २ बाघ की मौत हुई. वर्ष १९८९ और ९० में एक-एक बाघ की मौत हुई. १९९१,९२ और ९४ में कुल तीन बाघों की मौत हुई थी. १९९४-९५ में भी एक-एक बाघ मरे. वर्ष १९९६ एक बाघ और ९७ में दो बाघ मौत की नींद सो गए. साल १९९८-९९ में भी कुल ४ बाघ मारे गए. २००१-०२ में भी दो-दो बाघ की मौत हुई और २००३ में एक बाघ ने दम तोडा. २००४ में ४, २००६ में तीन , साल २००७ में ५ और २००८ में दो बाघ मरे. इन बाघों की मौत में जहा कुछ की मौत प्राकृतिक हुई तो कुछ की आपसी संघर्ष और बिमारी के कारन, लेकिन इनमे सबसे बड़ी संख्या शिकारियों द्वारा मारे गए बाघों की हुई.

फूलों के कारोबार को लेकर सरकार और निजी कम्पनी में तकरार


ध्रुव रौतेला
नैनीताल जिले के भीमताल के पास स्थित चांफी की बहुचर्चित इंडो डच परियोजना इन दिनों विवादों के घेरे में है. २८ फ़रवरी २००९ से सुरु हुई कुल ८ करोड़ ९ लाख लागत की इस कृषि आधारित परियोजना को ख्यातिप्राप्त प्रगतिशील किसान के रूप में जाने जाने वाले "पपाया मेन" के नाम से मशहूर सुधीर चड्डा ने दो अन्य निदेशकों जिनमे से एक दिल्ली और एक होलेन्ड से है के साथ शुरु किया था जिस पर सरकार ने अब घटिया क्वालिटी के बीज किसानो और सरकार को बचने का आरोप लगते हुए जांच बेठा दी है. उत्तराखंड सरकार के सिडकुल से टेंडर द्वारा प्राप्त इस प्रोजेक्ट को जोर-शोर के साथ शुरु किया गया और उच्च टेक्नीक पर आधारित मशीनो को होलेन्ड से लाकर इस प्रोजेक्ट के लिए लगाया गया पूरे देश में तकनीक के हिसाब से बीज बनाने की यह सर्वाधिक उच्च कोटि की परियोजना मानी जाती है. इंडो डच होर्टीकल्चर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सुधीर चड्डा का कहना है की इस परियोजना को शुरू करने का उनका मकसद देश में फूलो के बीज का निर्यात रोकना था ताकि हम अपना ही बीज बनाकर अपने ही किसानो को दे सके और हमारी तकनीक को फिर बाहर को लोग भी जाने . वैसे यह भी एक हकीकत है की छोटे से गाँव चांफी में इस परियोजना के लगने से जहा सेकड़ो किसान लाभान्वित हुए है वही कई लोगो को रोजगार भी मिल सका है पंतनगर विवि के कुलपति समेत सरकार के कई मंत्री और यहाँ तक की राज्यपाल भी इस परियोजना स्थल पर पहुचकर मीडिया के माध्यम से इसकी खूब तारीफ भी कर चुके है उत्तराखंड सरकार ने तो बीते महीने उद्यान विभाग के अपने प्रदेश भर के सभी एस.एच.ओ को यहाँ ट्रेनिंग भी दिलाई थी. इस बार जो विवाद शुरु हुआ वह यह की एक पखवाड़े पहले प्रदेश के कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत यहाँ पहुचे उनके साथ कृषि सचिव विनोद फोनिया भी थे दौरे के समय ही मीटिंग के दौरान फोनिया ने इंडो डच परियोजना की मंशा पर ही सवाल उठाने शुरु कर दिए और सरकार को लघभग ४० लाख रूपये के घटिया क्वालिटी के ग्लाईडोलिया बेचने का आरोप लगाया जिसपर कृषि मंत्री ने तीन सदसीय जाँच कमिटी बेठा दी जो शुक्रवार को देहरादून से आकर ग्लाईडोलिया के बीज के नमूने ले जा चुकी है उद्यान सलाहकार समिति के वि पि उनियाल और उपनिदेशक भारत राज ने बीज के सेम्पल ले लिए है कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हमसे कहा की उन्हें व्यक्तिगत रूप से यह परियोजना किसान की हितकर लगी है रही बीज के जाँच की बात तो वह कमिटी बताएगी की गड़बड़ कैसे हुई . वैसे ग्लाईडोलिया के बीज की कीमत इंडो डच होर्टीकल्चर प्राइवेट लिमिटेड में २.२५ रूपये प्रति बल्ब है लेकिन विनोद फोनिया कहते है की उन्हें यही बल्ब विदेशो से मंगाकर भी २.०७ रूपये का पड़ रहा है तो फिर इस परियोजना का सरकार को क्या लाभ . चांफी के इस इंडो डच पार्क में कास्तकारो को फूलो की खेती का प्रक्षीसन भी दिया जा रहा है . निदेशक सुधीर चड्डा कहते है की सरकार सही सोच के साथ किसानो का हित देखते हुए इस परियोजना में उनका साथ दे कही पर वह गलत है तो उनको जांच स्वीकार है पर बिना बात के संस्थान की छवि ख़राब न की जाये . वैसे सूत्रों से जो बात पता चली है वह यह है की विवाद मेरत की एक कम्पनी को लेकर हुआ है जिसने बतौर वेंडर पहले इंडो डच से बीज खरीदे और फिर उत्तराखंड सरकार को मोटे मुनाफे पर बेच दिए लेकिन यहाँ सरकार की टेंडर की प्रक्रिया भी सवालो के घेरे में है यदि बीज महंगा था तो टेंडर उक्त कंपनी को क्यों दिया गया इस लड़ाई के पीछे सरकार और इंडो डच न होकर एक आई.ए.एस सचिव विनोद फोनिया और ऊँची रसूक वाले सुधीर चड्डा के बीच के आपसी मतभेद भी है माना यह भी जाता है की उक्त परियोजना में भाजपा के भी एक बड़े नेता का अंदरखाने पैसा लगा हुआ है .